
वैदिक काल / वैदिक सभ्यता
➤ वैदिक काल का विभाजन दो भागों 1. ऋग्वैदिक काल (1500-1000ई०पू०) और उत्तर वैदिककाल (1000-600 ई०पू०) में किया गया है।
➤ आर्य सर्वप्रथम पंजाब एवं अफगानिस्तान में बसे। मैक्स मूलर ने आर्यों का मूल निवासस्थान मध्य एशिया को माना है। आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक सभ्यता कहलाई।
➤ आर्यों द्वारा विकसित सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी।
➤ आर्यों की भाषा संस्कृत थी।
➤ आर्यों द्वारा खोजी गयी धातु लोहा थी। जिसे श्याम अयस् कहा जाता था। ताँबे को लोहित अयस् कहा जाता था।
➤ आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे – संगीत, रथदीड, घुड़दौड़ एवं यूतक्रीड़ा।
➤ आर्यों के प्रशासनिक ईकाई आरोही क्रम से इन पाँच भागों में बँटा था-कुल, ग्राम, विश, जन, राष्ट्र।
➤ आर्यों का समाज पितृप्रधान था। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल धी, जिसका मुखिया पिता होता था, जिसे कुलप कहा जाता था।
➤ आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था।
➤ आर्यो का प्रिय पशुधोड़ा एवं सर्वाधिक प्रिय देवता इन्द्र थे।
➤ आयों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था। यह वनस्पति से बनाया जाता था।
➤ आर्य मुख्यतः तीन प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते -1. वास 2. अधिवास और 3. उष्णीष |
➤ स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण करती थी। ऋग्वेद में लोपामुद्रा, बोषा,सिकता,आपला एवं विश्वास जैसी विदुषी स्त्रियों का वर्णन है।
➤ स्त्रियाँ इस काल में अपने पति के साथ यज्ञ कार्य में भाग लेती थी।
➤ विधवा अपने मृतक पति के छोटे भाई (देवर) से विवाह कर सकती थी।
➤ सूत, रथकार तथा कम्पादि नामक अधिकारी रली कहे जाते थे। इनकी संख्या राजा सहित करीब 12 हुआ करती थी।
➤ सांख्य दर्शन भारत के सभी दर्शनों मे सबसे प्राचीन है। इसके अनुसार मूल तत्व पच्चीस है, जिनमें प्रकृति पहला तत्त्व है।
➤ सभा एवं समिति राजा को सलाह देने वाली संस्था थी। सभा श्रेष्ठ एवं संभ्रात लोगों की संस्था थी जबकि समिति सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती थी। इसके अध्यक्ष को ईशान कहा जाता था।
➤ व्यापार हेतु दूर-दूर तक जानेवाला व्यक्ति को पणि कहते थे।
➤ वाजपति-गोचर भूमि का अधिकारी होता था।
➤ लेन-देन में वस्तु-विनियम की प्रणाली प्रचलित थी।
➤ राज्याधिकारियों में पुरोहित एवं सेनानी प्रमुख थे।
➤ युद्ध में कबीले का नेतृत्व राजा करता था। युद्ध के लिए गविष्टि शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है-गायों की खोज।
➤ महाभारत एवं रामायण महाकाव्य हैं।
➤ मनुष्य एवं देवता के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभानेवाले देवता के रूप में अग्नि की पूजा की जाती थी।
➤ बाल-विवाह एवं पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।
➤ पुरप-दुर्गपति एवं स्पश-जनता की गतिविधियों को देखने वाले गुप्तचर होते थे।
➤ जीवन भर अविवाहित रहनेवाली महिलाओं को अमाजू कहा जाता था।
➤ ग्राम के मुखिया ग्रामिणी एवं विश् का प्रधान विशपति कहलाते थे। जन के शासक को राजन कहा जाता था।
➤ गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तरवैदिक काल में हुआ।
➤ गायत्री मंत्र सवितृ नामक देवता को संबोधित है, जिसका संबंध ऋग्वेद से है।
➤ गाय को अध्न्या (न मारे जाने योग्य पशु) की श्रेणी में रखा गया था। गाय की हत्या करने वाले या उसे घायल करने वाले के लिए वेदों में मृत्युदंड अथवा देश से निकाले की व्यवस्था की गई है।
➤ ऋण देकर ब्याज लेने वाला व्यक्ति को वेकनॉट (सूदखोर) कहा जाता था।
➤ ऋग्वैदिक समाज चार वर्षों में विभक्त था। वे वर्ण थे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । यह विभाजन व्यवसाय पर आधारित था। ऋग्वेद के 10वें मंडल के पुरुषसूक्त में चतुर्वणों का उल्लेख मिलता है। इसमें कहा गया है कि ब्राह्मण परम पुरुष के मुख से, क्षत्रिय उनकी भुजाओं से, वैश्य उनकी जाँघों से एवं शूद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए हैं।
➤ ऋग्वेद के 10वें मंडल के पुरुषसूक्त में चतुर्वणों का उल्लेख मिलता है। इसमें कहा गया है कि ब्राह्मण परम पुरुष के मुख से, क्षत्रिय उनकी भुजाओं से, वैश्य उनकी जाँघों से एवं शूद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए हैं।
➤ ऋग्वेद में उल्लिखित सभी नदियों में सरस्वती सबसे महत्त्वपूर्ण तथा पवित्र मानी जाती थी। ऋग्वेद में गंगा और यमुना का उल्लेख सिर्फ एक बार हुआ है।
➤ उत्तरवैदिक काल में हल को सिरा और हल रेखा को सीता कहा जाता था।
➤ उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवसाय की बजाय जन्म के आधार पर निर्धारित होने लगे थे।
➤ उत्तरवैदिक काल में राजा के राज्याभिषेक के समय राजसूर्य यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता था।
➤ उत्तरवैदिक काल में निष्क और शतमान मुद्रा की इकाइयाँ थीं, लेकिन इस काल में किसी खास भार, आकृति और मूल्य के सिक्कों के चलन का कोई प्रमाण नहीं मिलता।
➤ उत्तरवैदिक काल में कौशाम्बी नगर में प्रथम बार पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया है।
➤ उत्तरवैदिक काल में इन्द्र के स्थान पर प्रजापति सर्वाधिक प्रिय देवता हो गए थे।
➤ इसरान युद्ध का उल्लेख ऋग्वेद के 7वें मंडल में है, यह युद्ध परुषणी (रावी) नदी के तट पर सुदास एवं दस जनों के बीच लड़ा गया, जिसमें सुदास विजयी हुआ।
➤ ‘सत्यमेवजयते’ मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।
➤ ‘महाभारत’ का पुराना नाम जयसंहिता है। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है।
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